Reported by lokpal report
17 Jun 2018
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वाशिंगटन डी.सी : भारत के बच्चों में अन्य धर्मों के प्रति जबरदस्त सहिष्णुता और स्वीकार्यता देखी जा रही है. कैलिफ़ोर्निया की एक यूनिवर्सिटी -शांता क्रूज़ के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में हिन्दू और मुस्लिम धर्मों के बच्चों का यह मानना है कि दोनों धर्मों के लोगों को अपने-अपने कायदों के पालन करना चाहिए. लेखक ओडुन दहल के मुताबिक बच्चों के यही विचार आशावाद की नयी किरण है.
आमतौर पर ऐसे बहुत काम ही रिसर्च होते हैं जिनमे धार्मिक मानदंडों के बारे में बच्चों की राय के बारे में सोचा जाता है. सच तो यह है कि अधिकतर रिसर्च पूरे विश्व में हुए धार्मिक संघर्षों जैसे यूरोप में कैथोलिक/प्रोटोस्टेंट, सुन्नी और शिया मतभेदों पर आधारित होते हैं. धर्मिक मानदंड ही यह व्याख्या करते हैं कि कैसे कपड़े पहनें और भू स्वामित्व से लेकर प्रजनन तक के नियम भी वही निर्धारित करते हैं. .
दहल के मुताबिक, जबकि बच्चे अपने धर्मों को प्राथमिकता देते हैं यहां इस बात का कोई प्रमाण नहीं कि वे अन्य धर्मों के मानदंडों को ख़ारिज करते हैं. यही सहिष्णुता समभाव का पहला सकारात्मक बिंदु है.
यह अध्ययन गुजरात के एक क्षेत्र में किया गया जहां हिन्दू-मुस्लिम हिंसा का एक इतिहास रहा है. अनुसन्धान कर्ताओं ने 9-15 साल के आयुवर्ग वाले 100 बच्चों पर रिसर्च किया. यह अध्ययन विभिन्न हिन्दू मानदंडों जैसे बीफ खाने की मनाही और मुस्लिम मानदंडों जैसे मूर्ति पूजा, पर आधारित किया गया था. उन्होंने बच्चों से नैतिक मानदंडों के तहत आसपास युवाओं के तर्क का पता लगाने के बारे में भी सवाल किये.
इन निष्कर्षों ने यह आशा व्यक्त की है कि धार्मिक मतभेदों की तुलना में बच्चों में अन्य धर्मों की प्रथाओं में नकारात्मकता विकसित करने की जरुरत नहीं है. दहल ने कहा, "बल्कि, बच्चों की समझ का यह स्तर समय के साथ संघर्ष को कम करने में एक अहम भूमिका निभाएंगे". यह अध्ययन बाल विकास में प्रकाशित किया गया है.
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